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लेखनी कहानी -10-Apr-2023 क्या यही प्यार है

भाग 2 
आनंद एक गहरी श्वास छोड़ते हुए बोला 

उजड़े हुए चमन की ना पूछो दास्तां हमसे तुम 
गुल, दरिया, धूप, बवंडर या माली का नाम लें  

मैं आनंद मोहन अग्रवाल शहर के नामी गिरामी नगर सेठ द्वारकानाथ अग्रवाल का इकलौता पुत्र हूं । बचपन से लेकर आज तक कभी अभावों को नहीं देखा है मैंने । जिस चीज की इच्छा की , इच्छा करने से पहले वह चीज हाजिर हो गई थी । चार बहनों का इकलौता भाई हूं । इससे आप अंदाजा लगा सकती हैं कि घर में मेरी हैसियत कैसी है । पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि अत्यधिक लाड़ प्यार ने मुझे बिगड़ैल बना दिया हो । मेरी मां श्रीमती सीता देवी नाम की ही सीता देवी नहीं हैं, वास्तव में वे आधुनिक सीता देवी ही हैं । उन्हीं के संस्कार हैं जिनके कारण मैं आज भी शराब के हाथ नहीं लगा पाता हूं । 

बचपन खेलने कूदने में कब गुजर गया, पता ही नहीं लगा । होश संभाला तो खुद को कॉलेज में पाया । शक्ल सूरत तो भगवान ने ठीक ठाक दे ही दी है, धन दौलत की भी कोई कमी नहीं है । इन सबके कारण कॉलेज की अनेक लड़कियां मेरे चारों ओर मंडराती रहती थीं मगर मुझे कोई पसंद नहीं आई । फ्लर्ट करना मेरी आदत नहीं है इसलिए अपनी मस्ती में मस्त होकर अपने दोस्तों के संग ऐश किया करता था । क्रिकेट का बेस्ट प्लेयर था और पढने में भी ठीक ठीक ही था । मेरे माता पिता के पास मेरे से संबंधित कोई भी शिकायत कभी भी नहीं आई । वे भी बड़े खुश थे । जिन्दगी बड़ी मस्ती के साथ आगे बढ़ रही थी । 

अचानक एक दिन एक घटना घटी । मैं एम ए में पढ रहा था । हमारी कॉलेज में एक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया । हम लोग दर्शक दीर्घा में बैठकर उसका आनंद ले रहे थे । इतने में कार्यक्रम संचालक ने अगली कलाकार सुश्री कविता चाहर का नाम पुकारा । कविता चाहर ने एक राजस्थानी गीत "और रंग दे रे म्हानै औजू रंग दे , म्हारी सासूजी नै दायी कौनी आई रे नीलगर और रंग दे" पर बहुत सुंदर नृत्य पेश किया । एक तो उसका महकता सौन्दर्य और उस पर उसका अद्भुत नृत्य । मैं मंत्र मुग्ध होकर उसे देखता रहा । उस दिन मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मेरा दिल कहीं चोरी हो गया है । बहुत तलाशने पर उसे कविता चाहर के कदमों तले कुचला हुआ पाया । 

कविता चाहर का नाम तो संचालक ने घोषित ही कर दिया था । यह भी बता दिया था कि वह बी ए तृतीय वर्ष की छात्रा है । बस हमारा अड्डा उस दिन से कविता चाहर का क्लास रूम बन गया । जब वह कॉलेज आती तब तब बस उसे ही देखते रहते थे । और उसे तब तक देखते रहते थे जब तक कि वह अपने घर नहीं चली जाती थी । 

एक दिन कविता चाहर ने हमारी शिकायत किसी प्रोफेसर से कर दी । बस, उस दिन से उसकी कक्षा में जाना बंद हो गया । हमारी हालत जल बिन मछली की सी हो गई थी । क्या मछली जल के बिना जीवित रह सकती है ? बोलो बोलो 

"नहीं । बिल्कुल नहीं" अनुसूइया ने हामी भरी । 

"जब मछली जल के बिना जीवित नहीं रह सकती है तो आनंद कविता के बिना कैसे जीवित रह सकता है ? अब हम उसके घर के इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगे । एक दो बार हमने उसके सामने आकर बात करने की कोशिश भी की । पत्र लिखकर उसे देना भी चाहा पर उस पत्थर हृदया लड़की ने कभी मुझे देखा तक नहीं । न कभी बात की और न कभी पत्र का आदान प्रदान किया । सामने जाम रखा हो और एक शराबी को उसे छूने नहीं दिया जाये तो इससे बड़ी सजा एक शराबी  को और क्या होगी ? 

हम उसके कंटीले नैनों के बाण से बिंधे बिंधे, उसकी कातिल मुस्कान से घायल हुए, उसकी मस्तानी चाल से बेसुध हुए बस जैसे तैसे जी रहे थे । लगता था कि संसार एक धुंए का कुंआ है जिसमें हम गिर पड़े हैं और हमारा दम निकल रहा है । ताजी हवा का कोई झोंका उस कुंए में आया ही नहीं । हम बाट जोहते जोहते थक गये थे । 

अचानक एक दिन मैं उसके घर के बाहर खड़ा था कि बस एक बार उसका दीदार हो जाए । उसकी खिड़कियां बंद रहती थीं हरदम । अचानक मेरा ध्यान उसकी खिड़की की ओर गया । वह खुली हुई थी । मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ इसलिए मैंने दो बार अपनी आंखें मसल मसल कर देखा । मुझे उस समय और भी अधिक आश्चर्य हुआ जब देखा कि खिड़की पर कविता खड़ी है और मेरी ओर देखकर मुसकुरा रही है । एक पल में ही मैं सैकड़ो सदियां जी गया । अब और कुछ ख्वाहिश नहीं बची थी । पर मुझे संदेह हुआ और मैंने पीछे मुड़कर देखा । क्या पता मेरे पीछे कोई और खड़ा हो और कविता उसे देखकर मुस्कुरा रही हो । पर मेरे पीछे कोई नहीं था । मैं निश्चिंत हो गया । अब तो कविता मेरी है , मेरी रहेगी , यह विश्वास हो गया था । 
धीरे धीरे हम कॉलेज में मिलने लगे । बस, एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते थे । इसी से मन को बहुत सुकून मिलता था । मेरे दोस्तों ने सुझाव दिया कि एक दिन उसे कहीं ले जाकर I love you बोल दूं । उसे कहीं ले जाने की बात तो ठीक लगी लेकिन I love you बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी । 

कॉलेज की लाइब्रेरी में वह एक दिन मुझे मिल गई । मैंने धीरे से कहा "हैलो कविता जी । मुझे तुमसे कुछ बात कहनी है" । इतनी सी बात कहने में मैं पसीने से तर बतर हो गया । वह मेरी हालत देखकर बहुत हंसी और बोली "मिस्टर आनंद, इस हालत में क्या बात करोगे और वो भी यहां ? ये कोई बात करने लायक जगह है क्या" ? उसकी आंखों में रहस्य की चादर छुपी हुई थी । मुझे भी लगा कि यह जगह बात करने के लिए उपयुक्त नहीं है । मैंने उसे शाम को रोज गार्डन में मिलने के लिए कहा तो वह राजी हो गई  । 

ठीक सात बजे मैं रोज गार्डन पहुंच गया । रोज का एक बूके और कई सारे रोज हाथों लेकर मैं उसका इंतजार करने लगा । वह एक घंटा देर से आई और आते ही देर से आने के लिए माफी मांगने लगी । मेरी बुझती हुई उम्मीदें फिर से जवान हो गईं । मैंने बूके से उसका स्वागत किया और एक गुलाब के पौधे के पास ही हम दोनों बैठ गये । 

"आई लव यू कविता जी" मैंने धीरे से अपने मन की बात कह दी । पहले तो उसने मुझे खा जाने वाली नजरों से देखा और फिर वह मेरी उस हालत को देखकर जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी । उसकी खनकती हंसी सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी मंदिर में सैकड़ों शंख एक साथ बज उठे हों । 
"बहुत डरपोक हो । तुम प्यार कैसे करोगे आनंद" ? हंसते हुए कविता बोली । 

मैं बड़ी मुश्किल से इतना ही कह पाया "प्यार कौन कमबख्त करता है , मैं तो पूजा करता हूं पूजा" । और मैंने अपना सिर उसके कदमों में रख दिया । 
उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर उठाया और अपने चेहरे के सामने लाते हुए मेरी आंखों में आंखें डाल दीं । उसकी आंखें कितनी नशीली थीं कि मैं बता नहीं सकता हूं । जैसे नशे का सारा समुद्र ही उडेल दिया हो उसने मेरे ऊपर । मैं नशे में धुत हो गया और मेरी पलकें स्वत: मुंदती चली गई  । मेरी तंद्रा तब टूटी जब मैंने अपने होठों पर उसके होठों का नर्म मुलायम स्पर्श महसूस किया । उस दिन पहली बार मैंने उसके दो अमृत कलशों से जी भरकर अमृत पान किया था । शायद उसी अमृत पान का असर है कि मैं आज तक जीवित हूं नहीं तो मैं कब का मर जाता" । आनंद एक पल को रुका 

"फिर क्या हुआ सर" ? अनुसूइया अधीर होकर बोली 

"होना क्या था ? मेरी जिंदगी को पंख लग गए । हम लोग कभी रेस्टोरेंट में कभी मॉल में और कभी सिनेमा हॉल में मिलने लगे । उसे शॉपिंग का बहुत शौक था । जब देखो तब शॉपिंग ही करती रहती थी । पर इससे मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ता था । भगवान ने मुझे चार चार हाथों से दिया था तो लुटाने के लिए केवल दो ही तो हाथ थे । मैं दिल खोलकर उस पर धन दौलत लुटाने लगा । ऐसा करते करते छ: महीने गुजर गए । 

एक दिन जब वह शाम को आई तो मुझे देखकर रोने लगी । मैं घबरा गया । कारण पूछा तो बताया नहीं । बड़ी बुरी स्थिति होती है हम प्रेमियों की । ये माशूकाऐं ऐसा फंसाती हैं कि बस जान ही नहीं निकलती है, बाकी सब कुछ निकल जाता है । बड़ी मिन्नतों के बाद उसने बताया कि वह एक झुग्गी में रहती है और सात दिन बाद उस झुग्गी को तोड़ा जायेगा । सड़क पर आने के भय से ही वह रो रही थी । मैंने कहा "मैं क्या कर सकता हूं" ? 
"इतने बड़े बाप के बेटे हो और पूछ रहे हो कि मैं क्या कर सकता हूं ? अपनी माशूका को सड़क पर पड़े देख लोगे क्या ? ये तो नहीं कि उसे एक आलीशान बंगला खरीद कर दे दो" । उसने कृत्रिम गुस्से से कहा । 

मेरी यही कमजोरी है कि मैं उसका जरा सा भी गुस्सा सहन नहीं कर पाता था । मैंने उसके सामने हाथ जोड़कर कहा "ठीक है बाबा , करता हूं कोई व्यवस्था" 
"करता हूं से क्या मतलब है तुम्हारा ? परसों तक करो । ये तुम्हारी "जान" का आदेश है" वह चिपटते हुए बोली । 
मेरे माथे पर कुछ क्षणों के लिए चिंता की लकीरें जरूर उभरी लेकिन मुझे मेरे पापा और मम्मी दोनों पर पूरा भरोसा था । इसलिए मैंने हां कह दिया । 

दो करोड़ रुपए का एक बंगला मैंने उसके नाम कर दिया । उसने मुझे बांहों में भर लिया और कहा "आनंद, आज मैं बहुत खुश हूं । तुमने मेरी सारी परेशानी दूर कर दी है । अत: तुम बदले में जो मेरे पास है वह ले सकते हो" । उसकी अर्थपूर्ण नजरों का आशय मैं समझ गया था मगर मैं अनजान बनते हुए कहने लगा "क्या दोगी तुम मुझे" ? 

उसने बहुत देर तक मेरी आंखों में देखा और खिलखिलाते हुए बोली "एकदम बुद्धू हो" । और वह भाग गई । मैं सब कुछ समझकर भी अनजान बना रहा क्योंकि मैं उसे शादी के बाद ही पाना चाहता था , पहले नहीं । 

उस घटना के बाद मैं पापा के साथ व्यापार के सिलसिले में कहीं बाहर चला गया । सात दिन बाद लौटा तो बिना कविता को बताये उसके बंगले पर चला गया । वहां पर जो नजारा देखा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई । कविता किसी और की बांहों में कैद थी । 

"कविता" ! मेरे मुंह से एक जोरदार चीख निकल गई । इससे वे दोनों घबरा कर अलग हो गए । कविता मुझे देखकर एकदम से घबरा गई और अंदर भाग गई  । वह व्यक्ति आगे बढकर बोला "तो तुम हो मिस्टर आनंद । चलो अच्छा हुआ जो तुमने आज हकीकत जान ली । मेरा नाम मोहसिन है और मैं कविता से दो साल से प्यार करता हूं । अरे नहीं रे बाबा । सॉरी , कविता मुझसे दो साल से प्यार करती है और हम दोनों एक वर्ष से "लिव इन" में रह रहे हैं । मैंने तुम्हें कविता के पीछे भागते हुए देखा । तुम्हारा पैसा देखा । इसके बाद मैंने ही प्लान बनाकर कविता को कहा कि वह तुम्हारे साथ प्यार करने का नाटक करे और धन दौलत, बंगला सब हासिल कर ले । अब सब कुछ मिल गया है तो अब तुम्हारी क्या जरूरत है ? चल, फूट यहां से । और एक बात सुन, आइन्दा इधर कदम मत रखना नहीं तो भून डालूंगा" उसने रिवाल्वर तानते हुए कहा । 

मुझे काटो तो खून नहीं । धन दौलत, बंगला जाने का मुझे दुख नहीं था मगर प्यार का नाटक रचने का असीमित दुख था । इतना बड़ा छल , विश्वास घात ! "ओह कविता , एक बार कह दो कि ये सब झूठ है । मैं तुम्हारी पूजा करता हूं कविता । ये तुमने क्या किया कविता ? मुझे जीते जी मार दिया" । मैं लड़खड़ा कर नीचे गिर पड़ा । 

इतने में कविता आ गई  । उसके चेहरे पर वही हंसी थी जो शूपर्णखां के चेहरे पर होती है । कहने लगी "तूने क्या सोचा था कि मैं तुझसे प्यार करती हूं ? तेरे जैसों को तो मैं अपने सैण्डल के नीचे दबाकर रखती हूं । शुक्र मना कि मैंने इतना सा ही लूटा तुझे । तेरे भोलेपन ने मुझे और ज्यादा लूटने से रोक दिया । अब खड़ा हो जा और अपनी "पूजा" को लेकर किसी "मंदिर" में जाकर पूजा कर लेना" । और वह अट्टहास कर हंसने लगी । 

आनंद ठगा सा रह गया । उसके दिल से कविता के लिए बद्दुआ निकली "जिस तरह तूने मेरे दिल के सैकड़ों टुकड़े किये हैं , एक दिन तेरे भी ऐसे ही सैकड़ों टुकड़े होंगे जिन्हें चील, कुत्ते खायेंगे" । यह शाप देकर वह आ गया । 

"बस, उस दिन के बाद से मैं यहां शराब पीने आने लगा मगर ये संस्कार साले पीने ही नहीं देते हैं, क्या करूं" । आनंद का चेहरा आंसुओं में डूब गया । 

क्रमश : 

श्री हरि 
11.4.23 

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4 Comments

अदिति झा

16-Apr-2023 08:44 AM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

18-Apr-2023 03:13 PM

🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

11-Apr-2023 08:45 PM

शानदार भाग

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Hari Shanker Goyal "Hari"

11-Apr-2023 10:20 PM

🙏🙏

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